Sunday, March 22, 2015

दर्द हो शर्मिंदा तू
देख छोड़ दिया तुझको मैंने,
तेरे होते हुए भी तुझको ना महसूस किया मैंने
दर्द हो शर्मिंदा तू
निराशा को भी मुंह कि खानी तो पड़ी
आई थी दिल दुखाने ,
और अपना पीछा छुड़ाके चली,
आशा से मिलकर एक पल भी ठहर सकी
निराशा हो शर्मिंदा तू देख तेरी यहाँ एक ना चली...
तन्हाई तू भी अब अकेली रोती तो होगी,
अपनी सखी के छूट जाने का गम मनाती तो होगी
अब तो शायद अकल  आई ही होगी...
अ तान्हाई हो शर्मिंदा तू
रह गयी अकेली आज तू भी
आज ख़ामोशी की भी नीद तोड़ दी मैंने
उसने भी बातें करने कि आज़ादी है पायी,
शर्म को छोड़ उसने अप्नी नयी दुनिया है बसाई
शरम हो शर्मिंदा तू देख इस ख़ामोशी ने नयी ज़बान है पायी !!




 






Thursday, December 19, 2013

अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले!!

अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले 
कुछ अँधेरे मैं धूमिल और कुछ आँसू  में बह चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

कुछ पतझड़ के पत्ते बने, कुछ सावन के बादल,
कुछ बूँदे  बने  तो कुछ हवा हो चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

कुछ दीपक बने  तो कुछ जुगनू ,
कुछ बुझ गए पल में  और कुछ जगमगाते चले 
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !


कुछ आशा के फूल, कुछ निराशा कि झाड़ बने ,
कुछ चुभे थोडा थोडा सा और कुछ महकता संसार दे चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !


कुछ आँखों तले  बैठ कर ही मन लुभाते रहे,
कुछ नीद को  अपने गम बताते रहे,
कुछ बने अनकही और कुछ गुनगुनाते चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

Tuesday, December 3, 2013

शब्द.......

शब्दो की  सब माया है और शब्दो का सब खेल है 
शब्दो का है मेल ज़रूरी तभी दिलों का मेल है 

शब्दो का संसार बड़ा है! कटु, तीखा और शहद भरा है 
शब्दो के है जाल अनेक, फसे हमेशा उसमे नेक 

शब्दो से हारे हैं राजा शब्दो से जीते हैं फ़कीर 
शब्दो से ही बनी "मधुशाला" और शब्दो से ही बने हैं गीत 

शब्दो का ही दर्शन है और शब्दो से ही महायन 
शब्दो से ही महाभारत है और शब्दो से ही रामायण 

शब्दो ने छीनी है गद्दी,
शब्दो ने तोड़े परिवार 
शब्दो से ही हुई हैं संधि ,
 शब्दो से ही चली तलवार

शब्दो सा हथियार नहीं, इन जैसा  कोई बाण  नहीं 
शब्दो सी तलवार कहाँ और शब्दो सी  कोई ढाल नहीं 
सीख जाये जो इनको चलाना 
उसके पीछे चले ज़माना!!

Saturday, July 6, 2013

Few words for a broken heart!!

 हर अफसाने के पीछे तेरे, एक वजह दिखाई देती है
 हर दर्द के पीछे तेरे, कोई सजा दिखाई देती है 
अ दोस्त ये ही तो ज़िन्दगी  है, कभी सजा तो कभी मज़ा दिखाई देती है

अपने आंसू के सैलाब न बहा बेवजह 
इनकी भी कीमत है कुछ, ना लुटा बेवजह 
कल ज़रुरत हो किसी को जब इनकी, ऐसा नो हो की तू पत्थर बन जाये बेवजह 

गम ना कर उसका जो चला गया 
वफ़ा समझ उसकी कि वो  तुझको छोड़ गया 
यही तो वक्त है तेरा तुझको जानने का,
किसके लिए बना है तू  पहचानने  का 

ज़िन्दगी नाम नहीं केवल मोहब्बत का 
गर है ...तो जा अब कहीं और दिल लगा।

Nostalgia!!

यूँ देश विदेश मैं घूमे हम.…
पर वो बात कहीं भी आयीं ना ,
यूँ बीते दिन रात अनेक, पर वो रात कहीं भी पायी ना ,
होती थी अम्बर की चादर, और छोटू, तारो की ऊँगली पर गिनती करता था ,
बिस्तर पर मोटे गद्दे नहीं, बानो का तना  बिछौना होता था ,
दादी से किस्से सुनकर ही जब नीद आँख तक आती थी ,
जब सपनो की दुनिया ही बस मन को बहुत लुभाती थी ,
नहीं मिली वो रात कहीं जब भैया जोक सुनाता था ,
"दीदी ने खाई इमली आज" से ब्लैक मेल किया जाता था ,
लेटे लेटे जब यूँही, हाथ ज़मीन तक जाता था ,
मिट्टी का छोटा सा टुकड़ा  खाने को मिल जाता था 
पापा के आने का इंतीज़ार आँखों में होता था 
क्या खाने  की चीज़ लाये हो, बस ध्यान इसी पे रहता था;
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बीत गए वो पल सभी, पर यादे अभी भी ताज़ा हैं 
बनी रहे ये यादे यूँ ही और क्या इससे ज्यादा है।

Tuesday, January 17, 2012

कभी ..........

कभी शाम सुबह सी लगती है और कभी वो  धूमिल हो जाती है,
धड़कन थमी सी लगती है  और कभी तीव्र हो जाती है ,
कभी खुश बहुत हो जाती हूँ , और कभी उदास खुद को पाती हूँ,
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये....

हर दिन उमंग से भरा हुआ, हर रात कभी निराली है,
कभी सपनो से भरे नयन और कभी आँखे बिलकुल खाली हैं,
दिन में ही  झोंके आयें कभी  और कभी रात में  नींद बेगानी है..
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये.....

गुमसुम कभी रहती हूँ और सोच में डूबी रहती हूँ,
कभी खुद से ही बातें करती हूँ और  ख्वाबों में खोयी रहती हूँ,
आशाएं बहुत करूँ खुद से ,पर कुछ ही को पूरा करती हूँ ,
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये ..

खुद से प्यार बहुत मुझको,
पर खुद को  कभी भूल जाती हूँ मै,
फूलो को पाने की चाह में कभी, कांटो से मन बहलाती हूँ मै..
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये.....

पर ये "कभी" केवल "कभी" ही है..
ये सब कुछ  केवल कभी-कभी है.....
जीवन का खालीपन भी  अच्छा होता है कभी कभी,
पागलपन भी बुरा  नहीं होता है कभी कभी!
ये खालीपन ही है जो लाता है जीवन में उद्देश्य,
ये पागलपन ही है जो  प्राप्त कराता है लक्ष्य.....


Friday, June 3, 2011

दुनिया....

वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है,
कहीं ख़ुशी का फव्वारा तो कहीं आसूं की प्याली है....
वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है..

मानवता का पाठ पढ़ाते, पर मानव  का कोई  मूल्य नहीं ,
धर्म  अधर्म  की   बात  करें सब, फिर भी कोई धर्म नही,
जिस धर्म के ऊपर जान लुटाते, उसका तनिक भी ज्ञान नहीं!
 वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है,

कहने को  ईश्वर  एक है, फिर भी करोड़ो नाम हैं,
कहीं कहलाते देवराज , और कहीं इन्द्र बदनाम है,
जब ईश्वर अल्लाह एक हैं, तो क्यों मंदिर मस्जिद की लड़ाई ?
जब कर्म ही सबसे प्रधान है, तो क्यों करते हैं किस्मत की बड़ाई?
वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है,

कहीं अमीरी ,कहीं भलाई और कहीं सुख समृध्धि अपार है ,
कहीं गरीबी ,कहीं लड़ाई और आतंक का प्रचार है ,
कहीं पत्थर को दूध पिलाते ,और कहीं भूखे बच्चे करें गुहार ,
कहीं आदमी भूखा सोये,और  कहीं मंदिरों में हो सोने की बरसात,
पत्थर में बसते हैं ईश्वर, और उन पर करते तन मन न्योछावर,
कहीं पर तो लेते हैं ईश्वर की आड़,और करते हैं नर संहार,

वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है,
कहीं ख़ुशी का फव्वारा तो कहीं आसूं की प्याली है....
वाह री दुनिया वाह री दुनिया तू भी अजब निराली है..

Saturday, December 25, 2010

आशा............

एक झील का किनारा था,खगो का बसेरा था
धरा का हरा हरा आँचल था,और नीले नभ का साया था,
इन्ही सब के बीच रहता था मैं,
भोर के आने पर मुस्कुराता था मैं,
और दिनकर के संग भोजन बनाता था मैं,
कोयल के मधुर गीत सुनता था मैं,
मेघा की गर्जना की धुन पे गाता था मैं,
और बरखा को झूम के दिखाता था मैं,
रवि की प्रचंडता घटाता था मैं,रंग बिरंगे रंगों से प्रकृति को सजाता था मैं,
पुष्प लताओं से श्रृंगार करता था मैं,और झील के आईने में खुद को देखकर इतराता था मैं,
तितलियों को प्यार से सहलाता था मैं,मोहक पुष्पों के सौंदर्य -सुगंध को सरहाता था मैं,
संध्या के साथ ध्यान लगाता था मैं,रात को पक्षियों को लोरी सुनाकर सुलाता था मैं,
अपने सखो संग अठ्कलियाँ करता था मैं,
इस तरह हर दिन विकसित होता था मैं...........
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किन्तु आज बहुत लाचार हूँ मैं,बिन बीमारी के बीमार हूँ मैं,
आज बहुत उदास और अकेला हूँ मैं,आज चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर सकता,
अपने प्रिय मित्रो की हत्या को नहीं रोक सकता,
इन असहाय पक्षियों के अश्रु नहीं पोछ सकता,
वसुंधरा की गोद उजड़ने से नहीं रोक सकता,
आज मेरी बारी है इस दुनिया से जाने की,
अपनी आँखों के आगे अपने अंगो को कटते हुए देखने की,
आज सब कुछ छूट जायेगा यहाँ ,फिर कौन भला मुस्कुराएगा यहाँ,
हे पक्षियों आज आख़िरी बार आलिंगन करो मेरा, हे पुष्प लताओं तुम श्रृंगार करो मेरा,
हे सुमन, कुसुम तुम मत रोना, इन नभचरों और लताओं को साहस देना,
अपनी खुशबू से प्रकृति को महकाते रहना, अनेको रंगों से सजाते रहना,
तुम खुश रखना इस वसुधा को,
मैं फिर आऊँगा लौटकर.....

Sunday, August 29, 2010

समस्या..

.......समस्या......

अन्धकार आज फिर छाया है ,हर तरफ आक्रोश का साया है,
कहाँ छिप गया है वो उजाला, क्यों हर किसी को तड़पाया है....

कैसे होगी पूरी वो खोज जिसको खोज रहे हो तुम सदियों से,
कैसे कहा की जो तुम सचमुच खोज रहे थे तुमने उसी को पाया है ..

हर व्यक्ति विशेष की एक कहानी है,दुनिया आनी जानी है,
सबको जाना है एक दिन छोड़ के यही पर सब कुछ,
फिर काहे का मोह और काहें की माया है ....

हर कोई उलझा है अपनी उलझनों में,हर कोई दौड़ रहा है ज़िन्दगी की इस दौड़ में,
सवेरे से लेकर शाम तक जो दौड़ ख़त्म नहीं होती, गर रात ना होती तो रात में भी होती ,
क्या है वो सफलता चिन्ह जिस पर ये दौड़ ख़त्म होगी ,
अफ़सोस है मुझको , मैंने कभी नहीं सुना इस दौड़ में आज तक कोई जीत पाया है...

गरीबी और भुखमरी की जंजीरों में घिरे हैं देश विदेश,
पर सफ़ेद पोशो को ज़रा सा भी नहीं हैं खेद,
क्योंकि उनके पेट भरें हैं और साथ में उनके पालतू जीवों के भी ,
मर रहे हैं लोग बिन पानी के ,
उस पर कोई नहीं है रोष ,
केवल परवाह है तो राजगद्दी की जिस पर आज तक कोई भी नहीं टिक पाया है ..

हर दिन अत्याचार और अपराधों की बढती हैं गिनतियाँ ,
हर दिन दहेज़ की आग में झुलसती नयी नवेली दुल्हनिया,
हर दिन बढती बेरोजगार की समस्या ,
हर दिन बढती सड़कों पर भिखारियों की संख्यां ,
हर दिन होती एक कर्मठ पत्रकार की हत्या,
हर दिन एक बेरोजगार नवयुवक,एक हारा  हुआ किसान,
और एक भुखमरी से पीड़ित इंसान करने की सोचता है आत्महत्या ,
हर दिन बाज़ार में बिकती है सब्जी की तरह एक कन्या ,
हर दिन उठती हैं राज्य सभा और लोक सभा में इन सब समस्याओं पर अट्कलियाँ ,
परन्तु इन समस्याओं का समाधान ही नहीं हो पाया है .......
और हर तरफ आक्रोश का साया है..............

Tuesday, May 18, 2010

कस्टमर केयर का अनुभव .....

हुई सुबह ...
दिन शुरू हुआ ,
मैं उठी कुछ जल्दी में,
शायद थी अफरा तफरी में ,
जाना था लर्निंग लाइसेन्स बनवाने ,
पर ये क्या यहाँ थे बड़े बहाने
ऐसे कैसे लाइसेन्स बन पायेगा इसमें तो पूरा दिन जायेगा ,
लम्बी लाइन थी बड़ी वहां ,
पर कुछ काम हो रहा दिखता था जल्दी भी वहां,
थे कौन महान लोग वो जो करवा पा रहे थे काम को ,
कुछ क्षण सोचा मैंने और पूछ लिया एक सज्जन को  ,
वो बोले पैसे का है खेल सारा ,
बिन रिश्वत दिए नहीं गुज़ारा ,
अब आई कुछ बात समझ में ,
और हम भी चल दिए उनकी ही पंक्ति में,
कुछ पैसो की ही तो बात है ,
लेकिन समय की बचत भी तो प्रधान है ,
ये आश्वासन खुद को दिलाया ,
और रिश्वत देकर लाइसेन्स बनवाया !

कुछ दी देर में मोबाइल पे कॉल आया,
एयरटेल कस्टमर सर्विस का फ़ोन आया,
मैडम आपने अपना बिल नहीं चुकाया ,
ये क्या !!आश्चर्य से मैंने सर हिलाया ,
कनेक्शन ही नहीं है तो कौन सा बिल आया ?
फिर हमने  कस्टमर केयर को कॉल लगाया ,
कई प्रयासों के बाद कॉल मिलाया ,
किसी कन्या ने फ़ोन उठाया ,
पूछने पर बताया, आपने पिछले माह का बिल नहीं चुकाया ,
परन्तु हमने तो बिल चुकाया था ,फिर क्यों हमको ऐसा फ़ोन आया ,
इसके बाद भी कई दिनों तक इसी तरह के कॉल उठाये ,
कृपया अपना बिल शीग्र चुकाए ,
हर बार फ़ोन में होती या होता था एक नयी आवाज़ ,
हर बार निकालो समस्या का पूरा इतिहास ।
जैसे ही इस समस्या से निकली बाहर , एक और समस्या आ पड़ी गले पर ,

अपने आई सी आई  सी आई क्रेडिट कार्ड का बिल चुकाओ ,
अन्यथा उस पर ब्याज लगवाओ ,
ये कौन सा बिल निकल आया अचानक यहाँ पर,
मैं तो करती हूँ हर बिल पे समय पर ,
तुरंत कस्टमर केयर का ख्याल आया ,
लेकिन वहाँ से तो क्या ही समाधान आया ,
बड़ी मुश्किलों के बाद ,बिन मतलब का बिल पे करके
छुटकारा पाया !

हुआ फिर कुछ यूँ ही मोबाइल कस्टमर सेण्टर में भी ,
खराब हुआ है मोबाइल में कुछ मेरे,
देखके बतादो क्या हुआ है इसमें ?
कुछ देख कर वो बोला,.
बैठो कुछ देर बस, अभी सही होता है ,
यूँ तो हम जल्दी में थे ,
और भी बहुत काम बाकी थे ,
पर हो जायेगा अभी, ये सुन हम वहां बैठे थे
यूँ मिनटों से घंटे बने,
और वो हमसे कहने लगे ,
आप शाम में आ जाइये ,
और मोबाइल को ले जाइये ,
कुछ सोचा और हम चल दिए घर को ,
ये कह कर कृपया दे देना इसे शाम को ,
थी ज़रा जल्दी की बात पर करना पड़ा शाम तक इंतज़ार ,
पहुंचे हम शाम को ,
लेकिन ये क्या ये तो समझे बैठे हैं बुद्धू हमको ,
मैडम मोबाइल तो नहीं है तैयार ,
करो अब कल शाम तक का इंतज़ार !
क्या बोले अब कुछ समझ नहीं आता था ,
क्या हो रहा है ये ,क्यों सभी तरफ ऐसा है? मन में यही प्रश्न आता था ,
है कहने को ये कस्टमर केयर ऑफिस ,
मतलब ग्राहक सुविधा केंद्र ,
लेकिन ये सब तो बन रहे हैं बिन मतलब की असुविधा का केंद्र ,

क्या समस्या होने पर कस्टमर केयर के पास जाना
क्या सच में कस्टमर केयर में होता है सभी समस्याओं का समाधान,
लगता है अब तो वहाँ जाकर नहीं मिलती है केयर ,
बल्कि शायद मिलता है तेज़ आवाज़ में बोलने का डेयर।