अ दर्द हो शर्मिंदा तू
देख छोड़ दिया तुझको मैंने,
तेरे होते हुए भी तुझको ना महसूस किया मैंने
अ दर्द हो शर्मिंदा तू
निराशा को भी मुंह कि खानी तो पड़ी
आई थी दिल दुखाने ,
और अपना पीछा छुड़ाके चली,
आशा से मिलकर एक पल भी ठहर न सकी
अ निराशा हो शर्मिंदा तू देख तेरी यहाँ एक ना चली...
तन्हाई तू भी अब अकेली रोती तो होगी,
अपनी सखी के छूट जाने का गम मनाती तो होगी।
अब तो शायद अकल आई ही होगी...
अ तान्हाई हो शर्मिंदा तू
रह गयी अकेली आज तू भी॥
आज ख़ामोशी की भी नीद तोड़ दी मैंने
उसने भी बातें करने कि आज़ादी है पायी,
शर्म को छोड़ उसने अप्नी नयी दुनिया है बसाई।
देख छोड़ दिया तुझको मैंने,
तेरे होते हुए भी तुझको ना महसूस किया मैंने
अ दर्द हो शर्मिंदा तू
निराशा को भी मुंह कि खानी तो पड़ी
आई थी दिल दुखाने ,
और अपना पीछा छुड़ाके चली,
आशा से मिलकर एक पल भी ठहर न सकी
अ निराशा हो शर्मिंदा तू देख तेरी यहाँ एक ना चली...
तन्हाई तू भी अब अकेली रोती तो होगी,
अपनी सखी के छूट जाने का गम मनाती तो होगी।
अब तो शायद अकल आई ही होगी...
अ तान्हाई हो शर्मिंदा तू
रह गयी अकेली आज तू भी॥
आज ख़ामोशी की भी नीद तोड़ दी मैंने
उसने भी बातें करने कि आज़ादी है पायी,
शर्म को छोड़ उसने अप्नी नयी दुनिया है बसाई।
अ शरम हो शर्मिंदा तू देख इस ख़ामोशी ने नयी ज़बान है पायी !!