Tuesday, January 17, 2012

कभी ..........

कभी शाम सुबह सी लगती है और कभी वो  धूमिल हो जाती है,
धड़कन थमी सी लगती है  और कभी तीव्र हो जाती है ,
कभी खुश बहुत हो जाती हूँ , और कभी उदास खुद को पाती हूँ,
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये....

हर दिन उमंग से भरा हुआ, हर रात कभी निराली है,
कभी सपनो से भरे नयन और कभी आँखे बिलकुल खाली हैं,
दिन में ही  झोंके आयें कभी  और कभी रात में  नींद बेगानी है..
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये.....

गुमसुम कभी रहती हूँ और सोच में डूबी रहती हूँ,
कभी खुद से ही बातें करती हूँ और  ख्वाबों में खोयी रहती हूँ,
आशाएं बहुत करूँ खुद से ,पर कुछ ही को पूरा करती हूँ ,
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये ..

खुद से प्यार बहुत मुझको,
पर खुद को  कभी भूल जाती हूँ मै,
फूलो को पाने की चाह में कभी, कांटो से मन बहलाती हूँ मै..
जीवन का खालीपन है ये या मेरा पागलपन है ये.....

पर ये "कभी" केवल "कभी" ही है..
ये सब कुछ  केवल कभी-कभी है.....
जीवन का खालीपन भी  अच्छा होता है कभी कभी,
पागलपन भी बुरा  नहीं होता है कभी कभी!
ये खालीपन ही है जो लाता है जीवन में उद्देश्य,
ये पागलपन ही है जो  प्राप्त कराता है लक्ष्य.....


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