Sunday, March 7, 2010

मेरा आशियाँ !

मेरा आशियाँ !
एक छोटा सा आशियाँ था मेरा,सुंदर बगिया सा आशियाँ था मेरा,
कुछ फूल खिले थे उस बगियाँ में,दो माली भी थे उस बगियाँ में ,
ये प्यारा सा आशियाँ था मेरा ,

उस बगिया में थी कुछ कलियाँ जिनको अभी खिलना था,
कुछ भवरों से अभी उनको मिलना था ,
सपनो के महल सा सा आशियाँ था मेरा,

रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराती थी चारो और उस बगिया के ,
सुंदर मोर नृत्य किया करते थे इर्द गिर्द उस बगिया के,
रंगों से भरा ऐसा आशियाँ था मेरा ,

खिलने लगी थी अब वो कलियाँ,कुछ कच्ची थी पर थी यही दुनिया,
दो माली उनको सीचां करते थे,कलियाँ खुश रहती थी उनके ही दम से,
लहरों पे बसा ऐसा आशियाँ था मेरा....


फिर एक दिन एक तूफान आया ,जिसमे एक माली बिछड़ गया ,
था अब एक माली और नन्ही कलियाँ, एक माली बिन सूनी थी बगिया,
अब कौन देगा उन कलियों को पानी,वो एक माली नहीं था उन सबके लिए काफी,
ये कैसा हो चला था आशियाँ मेरा...

अब बिखर गयी थी सारी बगिया ,मुरझा गयी थी सारी कलियाँ ,
रहने लगा था उदास वो एक माली,उसकी दुनिया हो चली थी खाली,
छोटा सा आशियाँ था मेरा ..
फिर एक दिन एक दूजा माली आया ,खुश रखेंगें बगिया को ये विश्वास दिलाया,
पर वो माली था व्यर्थ बिलकुल,उसको ना थी कोई फिक्र बिलकुल,
वो तो अपने लिए ही जीता था ,उसके लिए बगिया का कोई महत्व नहीं था,
छोटा सा आशियाँ था मेरा,
उजड़ गयी थी अब वो प्यारी बगिया ,दोनों माली ने जिसको ऐसे ही छोड़ दिया,
मुरझा चली थी सारी कलियाँ,रोती सोती सी हो गयी थी वो बगिया ,

दो माली उनको छोड़ चले थे,वो एक दूजे के बस हो चले थे ,
वो भूल गए थे अपना वादा ,उनके लिए अपनी ख़ुशी थी ज्यादा,
छोटा सा आशियाँ था मेरा ,
पर इन कलियों में कुछ जान थी बाकी,जिसे एक दूजे माली ने आकर जानी..

वो भी थे दो माली,जो सींचा करते थे अपनी बगिया की डाली ,
उन्होंने उन कलियों को लिया अपनी बगियाँ मैं डाल,अब उनकी बगिया हो गयी थी विशाल,
लेकिन वो डर से घबराएं नहीं,उनके इरादे डगमगाएं नहीं.

उन्होंने मन मैं लिया था ठान ,वो रखेंगें बगियाँ को जैसे अपनी जान,
लगे सीचने उन मुरझायीं कलियों को,प्यार और दुलार से उन प्यासी कलियों को,
ऐसा एक आशिया था मेरा ,

फिर एक दिन एक नया सवेरा आया ,खिल चुकी थी अब सारी कलियाँ ,
माली दोनों ही खुश थे आज ,उनकी मेहनत रंग लायी थी आज,कलियाँ फूल बन गयी थी आज,
सफल हो गया था उनका जीवन ,फूलों को मिल गयी थी उनकी मंजिल,
फूलों पे भवरें मंडराने लगे थे, फूलों के रस को वो चाहने लगे थे .
अब खुश हैं माली और खुश हैं बगियाँ ,
बस यही प्यारा सा आशियाँ हैं मेरा ........

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