Sunday, March 7, 2010

मैं और वो

मैं और वो ,
वो आया और मुझको अपने साथ में लाया ,
साथ शुरू हुआ था जीवन हमारा
जागना सोना खेलना खिलाना ,
रहते थे हम हमेशा साथ ,
करते हर काम को साथ ,
हम साथ चलेंगें साथ रहेंगें ,
ऐसे थे अपने खयालात ,
खुश रहने का था बस अपना काम ,
फिक्र का नहीं था कहीं पर नाम ,
थे बड़े ख़ुशी से भरपूर अपने हालत ,

पर जैसे जैसे हम बड़े हुए ,
हम दोनों के रस्ते भी न जाने कैसे अलग हुए ,
था हमारा हर पल का साथ ,
और अब मिलना होता है अकस्मात् ,
जानते नहीं है कब मिलेंगे ?
कोई खबर नहीं होती है हाथ ,
पर जब भी हम मिलते हैं ,
वो लम्हे हसीं होते हैं,
जब भी वो आता है ढेरों खुशियाँ लता है ,
और मेरी दुनिया को रंगीन बना जाता है ,
पर जाने क्यों वो रहता नहीं है मेरे साथ ,
जाने कहाँ वो जाता है ,किस दुनिया मैं समां जाता है ?

जब वो जाता है सबको खुश छोड़ कर जाता है,
जब वो आता है तो भिन भिन स्थिति पाता है ,
और फिर सबकी दशा जानके उसका उपाय निकाल लाता है ,
और ऐसे अपना जीवन कटता जाता है ,
बहुत विवश मैं खुद को पाती हूँ ,
जब मैं ये सुन लेती हूँ ,
वो कभी लौट कर नहीं आता ,
पर लोगो को ये क्यों समझा नहीं आता ,
वो हर बार एक जैसा कैसे होके आ सकता है ,
वो तो हर बार और परिपक्व होके आता है ,
वो आता है और जाता है ,
हर कोई उसका आना चाहता है ,
जैसे वो सबका विधाता है ,
कब आएगा वो ये जानने को ज्योतिष को बुलाया जाता है,
कहीं इन्टरनेट पर कुंडली और अस्ट्रोलोजी का सहारा लिया जाता है ,
मुझे भी उसके आने का इन्तिज़ार सताता है ,
ऐसा मेरा और मेरे वक़्त का नाता है .....

2 comments:

  1. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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