तू जी जीवन एक नदिया सा ,
क्यों जिए भला बनके तालाब,
क्यों बने झील क्यों बने ताल,
ना होना है इनसे कुछ लाभ,
तू जी जीवन एक नदिया सा!
तू बह ऐसे ना ठहर कहीं ,
तू बहे जहाँ ,हरियाली हो ,
तू रुके अगर ,अँधियारा हो ,
तू जी जीवन एक नदिया सा!
तू कह ऐसे ,सब तुझे सुने ,
जब श्रवण लगाये,शांत रहे,
तू चलता जा तू चलता जा ,
और अपने पथ को स्वयं बना,
तू गाता जा एक नदिया सा,
तू जीवन जी एक नदिया सा!
तू प्यासे पथिक की प्यास बुझा,
तू ऊसर भू का श्राप मिटा,
तू जाये जहाँ लहराएँ वहां ,
तू खुशियों की बौछार ला,
लहराता जा इठलाता जा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!
आंधी तूफ़ान में बढ़ा वेग,
तपती धुप मैं बन शीतल,
तू बन विवेक तू बन सहज,
तू बढ़ता जा तू बढ़ता जा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!
तू पहुँच वहां गंतव्य जहाँ,
तू जीवन का अभिप्राय पा,
तू पा अपने उद्देश्य को,
आलिंगन कर उस अम्बुधि का,
तू जी जीवन एक नदिया सा,
तू पा उद्देश्य एक नदिया सा,
ना मुड़ पीछे तू बढ़ता जा ,
तू जी जीवन एक नदिया सा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!
No comments:
Post a Comment