Saturday, December 25, 2010

आशा............

एक झील का किनारा था,खगो का बसेरा था
धरा का हरा हरा आँचल था,और नीले नभ का साया था,
इन्ही सब के बीच रहता था मैं,
भोर के आने पर मुस्कुराता था मैं,
और दिनकर के संग भोजन बनाता था मैं,
कोयल के मधुर गीत सुनता था मैं,
मेघा की गर्जना की धुन पे गाता था मैं,
और बरखा को झूम के दिखाता था मैं,
रवि की प्रचंडता घटाता था मैं,रंग बिरंगे रंगों से प्रकृति को सजाता था मैं,
पुष्प लताओं से श्रृंगार करता था मैं,और झील के आईने में खुद को देखकर इतराता था मैं,
तितलियों को प्यार से सहलाता था मैं,मोहक पुष्पों के सौंदर्य -सुगंध को सरहाता था मैं,
संध्या के साथ ध्यान लगाता था मैं,रात को पक्षियों को लोरी सुनाकर सुलाता था मैं,
अपने सखो संग अठ्कलियाँ करता था मैं,
इस तरह हर दिन विकसित होता था मैं...........
...................................................................
...................................................................
किन्तु आज बहुत लाचार हूँ मैं,बिन बीमारी के बीमार हूँ मैं,
आज बहुत उदास और अकेला हूँ मैं,आज चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर सकता,
अपने प्रिय मित्रो की हत्या को नहीं रोक सकता,
इन असहाय पक्षियों के अश्रु नहीं पोछ सकता,
वसुंधरा की गोद उजड़ने से नहीं रोक सकता,
आज मेरी बारी है इस दुनिया से जाने की,
अपनी आँखों के आगे अपने अंगो को कटते हुए देखने की,
आज सब कुछ छूट जायेगा यहाँ ,फिर कौन भला मुस्कुराएगा यहाँ,
हे पक्षियों आज आख़िरी बार आलिंगन करो मेरा, हे पुष्प लताओं तुम श्रृंगार करो मेरा,
हे सुमन, कुसुम तुम मत रोना, इन नभचरों और लताओं को साहस देना,
अपनी खुशबू से प्रकृति को महकाते रहना, अनेको रंगों से सजाते रहना,
तुम खुश रखना इस वसुधा को,
मैं फिर आऊँगा लौटकर.....

Sunday, August 29, 2010

समस्या..

.......समस्या......

अन्धकार आज फिर छाया है ,हर तरफ आक्रोश का साया है,
कहाँ छिप गया है वो उजाला, क्यों हर किसी को तड़पाया है....

कैसे होगी पूरी वो खोज जिसको खोज रहे हो तुम सदियों से,
कैसे कहा की जो तुम सचमुच खोज रहे थे तुमने उसी को पाया है ..

हर व्यक्ति विशेष की एक कहानी है,दुनिया आनी जानी है,
सबको जाना है एक दिन छोड़ के यही पर सब कुछ,
फिर काहे का मोह और काहें की माया है ....

हर कोई उलझा है अपनी उलझनों में,हर कोई दौड़ रहा है ज़िन्दगी की इस दौड़ में,
सवेरे से लेकर शाम तक जो दौड़ ख़त्म नहीं होती, गर रात ना होती तो रात में भी होती ,
क्या है वो सफलता चिन्ह जिस पर ये दौड़ ख़त्म होगी ,
अफ़सोस है मुझको , मैंने कभी नहीं सुना इस दौड़ में आज तक कोई जीत पाया है...

गरीबी और भुखमरी की जंजीरों में घिरे हैं देश विदेश,
पर सफ़ेद पोशो को ज़रा सा भी नहीं हैं खेद,
क्योंकि उनके पेट भरें हैं और साथ में उनके पालतू जीवों के भी ,
मर रहे हैं लोग बिन पानी के ,
उस पर कोई नहीं है रोष ,
केवल परवाह है तो राजगद्दी की जिस पर आज तक कोई भी नहीं टिक पाया है ..

हर दिन अत्याचार और अपराधों की बढती हैं गिनतियाँ ,
हर दिन दहेज़ की आग में झुलसती नयी नवेली दुल्हनिया,
हर दिन बढती बेरोजगार की समस्या ,
हर दिन बढती सड़कों पर भिखारियों की संख्यां ,
हर दिन होती एक कर्मठ पत्रकार की हत्या,
हर दिन एक बेरोजगार नवयुवक,एक हारा  हुआ किसान,
और एक भुखमरी से पीड़ित इंसान करने की सोचता है आत्महत्या ,
हर दिन बाज़ार में बिकती है सब्जी की तरह एक कन्या ,
हर दिन उठती हैं राज्य सभा और लोक सभा में इन सब समस्याओं पर अट्कलियाँ ,
परन्तु इन समस्याओं का समाधान ही नहीं हो पाया है .......
और हर तरफ आक्रोश का साया है..............

Tuesday, May 18, 2010

कस्टमर केयर का अनुभव .....

हुई सुबह ...
दिन शुरू हुआ ,
मैं उठी कुछ जल्दी में,
शायद थी अफरा तफरी में ,
जाना था लर्निंग लाइसेन्स बनवाने ,
पर ये क्या यहाँ थे बड़े बहाने
ऐसे कैसे लाइसेन्स बन पायेगा इसमें तो पूरा दिन जायेगा ,
लम्बी लाइन थी बड़ी वहां ,
पर कुछ काम हो रहा दिखता था जल्दी भी वहां,
थे कौन महान लोग वो जो करवा पा रहे थे काम को ,
कुछ क्षण सोचा मैंने और पूछ लिया एक सज्जन को  ,
वो बोले पैसे का है खेल सारा ,
बिन रिश्वत दिए नहीं गुज़ारा ,
अब आई कुछ बात समझ में ,
और हम भी चल दिए उनकी ही पंक्ति में,
कुछ पैसो की ही तो बात है ,
लेकिन समय की बचत भी तो प्रधान है ,
ये आश्वासन खुद को दिलाया ,
और रिश्वत देकर लाइसेन्स बनवाया !

कुछ दी देर में मोबाइल पे कॉल आया,
एयरटेल कस्टमर सर्विस का फ़ोन आया,
मैडम आपने अपना बिल नहीं चुकाया ,
ये क्या !!आश्चर्य से मैंने सर हिलाया ,
कनेक्शन ही नहीं है तो कौन सा बिल आया ?
फिर हमने  कस्टमर केयर को कॉल लगाया ,
कई प्रयासों के बाद कॉल मिलाया ,
किसी कन्या ने फ़ोन उठाया ,
पूछने पर बताया, आपने पिछले माह का बिल नहीं चुकाया ,
परन्तु हमने तो बिल चुकाया था ,फिर क्यों हमको ऐसा फ़ोन आया ,
इसके बाद भी कई दिनों तक इसी तरह के कॉल उठाये ,
कृपया अपना बिल शीग्र चुकाए ,
हर बार फ़ोन में होती या होता था एक नयी आवाज़ ,
हर बार निकालो समस्या का पूरा इतिहास ।
जैसे ही इस समस्या से निकली बाहर , एक और समस्या आ पड़ी गले पर ,

अपने आई सी आई  सी आई क्रेडिट कार्ड का बिल चुकाओ ,
अन्यथा उस पर ब्याज लगवाओ ,
ये कौन सा बिल निकल आया अचानक यहाँ पर,
मैं तो करती हूँ हर बिल पे समय पर ,
तुरंत कस्टमर केयर का ख्याल आया ,
लेकिन वहाँ से तो क्या ही समाधान आया ,
बड़ी मुश्किलों के बाद ,बिन मतलब का बिल पे करके
छुटकारा पाया !

हुआ फिर कुछ यूँ ही मोबाइल कस्टमर सेण्टर में भी ,
खराब हुआ है मोबाइल में कुछ मेरे,
देखके बतादो क्या हुआ है इसमें ?
कुछ देख कर वो बोला,.
बैठो कुछ देर बस, अभी सही होता है ,
यूँ तो हम जल्दी में थे ,
और भी बहुत काम बाकी थे ,
पर हो जायेगा अभी, ये सुन हम वहां बैठे थे
यूँ मिनटों से घंटे बने,
और वो हमसे कहने लगे ,
आप शाम में आ जाइये ,
और मोबाइल को ले जाइये ,
कुछ सोचा और हम चल दिए घर को ,
ये कह कर कृपया दे देना इसे शाम को ,
थी ज़रा जल्दी की बात पर करना पड़ा शाम तक इंतज़ार ,
पहुंचे हम शाम को ,
लेकिन ये क्या ये तो समझे बैठे हैं बुद्धू हमको ,
मैडम मोबाइल तो नहीं है तैयार ,
करो अब कल शाम तक का इंतज़ार !
क्या बोले अब कुछ समझ नहीं आता था ,
क्या हो रहा है ये ,क्यों सभी तरफ ऐसा है? मन में यही प्रश्न आता था ,
है कहने को ये कस्टमर केयर ऑफिस ,
मतलब ग्राहक सुविधा केंद्र ,
लेकिन ये सब तो बन रहे हैं बिन मतलब की असुविधा का केंद्र ,

क्या समस्या होने पर कस्टमर केयर के पास जाना
क्या सच में कस्टमर केयर में होता है सभी समस्याओं का समाधान,
लगता है अब तो वहाँ जाकर नहीं मिलती है केयर ,
बल्कि शायद मिलता है तेज़ आवाज़ में बोलने का डेयर।

Tuesday, April 20, 2010

मेरी तीर्थ यात्रा ...

धूप का प्रकोप था फिर भी हममे जोश था,
जा रहे थे मस्त हो ,रास्ता विशाल था,
क्या हसीं ख्वाब था, जबकि धूप का शवाब था ,
चले थे सुबह सुबह,प्रसिद्ध धाम देखने,

जैसे तैसे पहुँच गए,हम रामेश्वरम में ठहर गए,
क्या हमने सोचा था,और क्या वहां नज़ारा था,
एक बार फिर हमने अपने देश की सरकार का नाम पुकारा था,

मैंने तो कुछ और ही प्रति बनायीं थी रामेश्वरम की,
परन्तु ये क्या मेरी आँखे देख रही थी।

चार धामों में से एक धाम है रामेश्वरम,
देश के चारो कोनो में प्रसिद्ध है रामेश्वरम,
फिर भी क्या सच में यही है रामेश्वरम?

जैसे ही सीमा में प्रवेश किया,
गन्दगी के ढेर से सामना हुआ।

जो मंदिर इतना पवित्र माना जाता है,
जिसके कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य मोक्ष पाता है,
उस मंदिर के कुंड का वर्णन मुझसे नहीं किया जाता है।

देश के चारो कोनो से लोगो का आना जाना है,
पर क्या किसी के मन में ये विचार आता है?
ये कुंड मोक्ष कैसे प्रदान करेगा,
ये दिख रहा था जैसे गन्दा नाला है ।
में सोच रही थी स्नान करूँगीं उस कुंड में ,
पर देख कर उस कुंड को थी मैं अचरज में।

क्या हो रहा है हमारी देश की धरोहर का हाल,
जबकि प्रतिदिन इस मंदिर में होता है हजारों लाखो रुपयों  का व्यापार।

मंदिर से निकल जब पहुंची मैं स्नान घाट पर,
वहां का नज़ारा तो था और भी विपत्तिकर,
सैंकड़ों लोग कर रहे थे स्नान,
और साथ ही साथ कर रहे थे कूड़े और गन्दगी का भी दान,
दया आ रही थी मुझको देख कर ऐसे लोगो का हाल,
जो इस देश के लिए कुछ अच्छा तो शायद ही कर पायें ,
पर इसके सौंदर्य और सम्मान को बिगाड़ने मैं कर रहे हैं बड़ा योगदान।


मैंने देखा ,जो मुख्य मंदिर के बाहर लिखा था।
"केवल हिन्दू ही अन्दर आ सकते है " का बोर्ड लगा हुआ था।
परन्तु कोई समझाए इन्हें "केवल हिन्दू ही अन्दर आ सकते हैं " का बोर्ड लगा देने से मंदिर के बाहर,
कभी भी नहीं होने वाला है इससे भगवान् का आदर।

अगर देश का एक ऐसा स्थान,
जो माना जाता है पतीत पावन धाम ,
अगर उसका है ऐसा हाल,तो न जाने क्या होगा देश की और धरोहरों का अंजाम?
और अगर ऐसे ही चलता रहा तो लगता है कुछ समय बाद ,
देश की अनमोल धरोहरों का नहीं होगा कहीं पर भी नाम।

तुम बिछड़े....

तुम बिछड़े तो हम सबसे दूर हो गए,
तुम्हारे पास आने को मजबूर हो गए ,

तुम्हारे दूर जाने से जो ज़ख्म हुए दिल में,
वो आज का  दिन आते आते, नासूर हो गए,

हमने कब सोचा था की हम कुसूरवार हो जायेंगें,
और आप खता कर के बेकुसूर हो गए ,

आप तो बेखबर हो हमारी हालत से ,
अपनी ही बातों में मशगूल हो गए ,
हम यहाँ आंसूं बहते रहे आपकी याद में,
और आप ये सोच कर की याद नहीं करेंगे मगरूर हो गए,

एक ज़माना था कि चमका किया करते थे हम,
और आज हम कांच,आप कोहिनूर हो गए,

अ बेखबर तेरी दोस्ती ने हमे शायर बना दिया,
शुक्र है यहाँ मयखाना नहीं ,
नहीं तो मालूम पड़ता कि हम पीने वालो में मशहूर हो गए।

Friday, March 12, 2010

जीवन एक नदिया सा...

जीवन एक नदिया सा !

तू जी जीवन एक नदिया सा ,
क्यों जिए भला बनके तालाब,
क्यों बने झील क्यों बने ताल,
ना होना है इनसे कुछ लाभ,
तू जी जीवन एक नदिया सा!

तू बह ऐसे ना ठहर कहीं ,
तू बहे जहाँ ,हरियाली हो ,
तू रुके अगर ,अँधियारा हो ,
तू जी जीवन एक नदिया सा!

तू कह ऐसे ,सब तुझे सुने ,
जब श्रवण लगाये,शांत रहे,
तू चलता जा तू चलता जा ,
और अपने पथ को स्वयं बना,
तू गाता जा एक नदिया सा,
तू जीवन जी एक नदिया सा!

तू प्यासे पथिक की प्यास बुझा,
तू ऊसर भू का श्राप मिटा,
तू जाये जहाँ लहराएँ वहां ,
तू खुशियों की बौछार ला,
लहराता जा इठलाता जा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!

आंधी तूफ़ान में बढ़ा वेग,
तपती धुप मैं बन शीतल,
तू बन विवेक तू बन सहज,
तू बढ़ता जा तू बढ़ता जा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!

तू पहुँच वहां गंतव्य जहाँ,
तू जीवन का अभिप्राय पा,
तू पा अपने उद्देश्य को,
आलिंगन कर उस अम्बुधि का,
तू जी जीवन एक नदिया सा,

तू पा उद्देश्य एक नदिया सा,
तू धैर्य ला एक नदिया सा ,
ना मुड़ पीछे तू बढ़ता जा ,
तू जी जीवन एक नदिया सा,
तू जी जीवन एक नदिया सा!

Sunday, March 7, 2010

मेरी सुबह मेरी शाम..

मेरे दिल के अरमान बन गए हो ,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो,
मखमली सी सेज पर जो  सपने सजाती हूँ,
उन सपनो के मेहमान बन गए हो,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो,
आखों में मेरी एक सूखी नदी सी थी,
भर आयें अब तो लगता है बिखेरेंगें मोती,
मेरी पलकों का चैन,सुकून ,आराम बन गए हो,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो!
आहिस्ता से दिल में दस्तक देकर,
अब इस दिल का कोहराम बन गए हो,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो,
एक सोच में था अहसास आपका,
एक सपने में था ख्याल आपका ,
वो हकीकत में मिलेगा ये उम्मीद ना थी ,
मेरी सोच का अंजाम बन गए हो,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो,
जो सपने हैं मेरे उनको हकीकत बनाना चाहती हूँ,
इस दिल में एक प्यार का मंदिर बनाना चाहती हूँ,
हर दर्द में एक चैन पाना चाहती हूँ,
कुछ वक़्त हैं इसमें जब इस सबके लिए में कहूँ,
कि मेरे भगवान् बन गए हो,
मेरी सुबह मेरी शाम बन गए हो!

मैं और वो

मैं और वो ,
वो आया और मुझको अपने साथ में लाया ,
साथ शुरू हुआ था जीवन हमारा
जागना सोना खेलना खिलाना ,
रहते थे हम हमेशा साथ ,
करते हर काम को साथ ,
हम साथ चलेंगें साथ रहेंगें ,
ऐसे थे अपने खयालात ,
खुश रहने का था बस अपना काम ,
फिक्र का नहीं था कहीं पर नाम ,
थे बड़े ख़ुशी से भरपूर अपने हालत ,

पर जैसे जैसे हम बड़े हुए ,
हम दोनों के रस्ते भी न जाने कैसे अलग हुए ,
था हमारा हर पल का साथ ,
और अब मिलना होता है अकस्मात् ,
जानते नहीं है कब मिलेंगे ?
कोई खबर नहीं होती है हाथ ,
पर जब भी हम मिलते हैं ,
वो लम्हे हसीं होते हैं,
जब भी वो आता है ढेरों खुशियाँ लता है ,
और मेरी दुनिया को रंगीन बना जाता है ,
पर जाने क्यों वो रहता नहीं है मेरे साथ ,
जाने कहाँ वो जाता है ,किस दुनिया मैं समां जाता है ?

जब वो जाता है सबको खुश छोड़ कर जाता है,
जब वो आता है तो भिन भिन स्थिति पाता है ,
और फिर सबकी दशा जानके उसका उपाय निकाल लाता है ,
और ऐसे अपना जीवन कटता जाता है ,
बहुत विवश मैं खुद को पाती हूँ ,
जब मैं ये सुन लेती हूँ ,
वो कभी लौट कर नहीं आता ,
पर लोगो को ये क्यों समझा नहीं आता ,
वो हर बार एक जैसा कैसे होके आ सकता है ,
वो तो हर बार और परिपक्व होके आता है ,
वो आता है और जाता है ,
हर कोई उसका आना चाहता है ,
जैसे वो सबका विधाता है ,
कब आएगा वो ये जानने को ज्योतिष को बुलाया जाता है,
कहीं इन्टरनेट पर कुंडली और अस्ट्रोलोजी का सहारा लिया जाता है ,
मुझे भी उसके आने का इन्तिज़ार सताता है ,
ऐसा मेरा और मेरे वक़्त का नाता है .....

मेरा आशियाँ !

मेरा आशियाँ !
एक छोटा सा आशियाँ था मेरा,सुंदर बगिया सा आशियाँ था मेरा,
कुछ फूल खिले थे उस बगियाँ में,दो माली भी थे उस बगियाँ में ,
ये प्यारा सा आशियाँ था मेरा ,

उस बगिया में थी कुछ कलियाँ जिनको अभी खिलना था,
कुछ भवरों से अभी उनको मिलना था ,
सपनो के महल सा सा आशियाँ था मेरा,

रंग बिरंगी तितलियाँ मंडराती थी चारो और उस बगिया के ,
सुंदर मोर नृत्य किया करते थे इर्द गिर्द उस बगिया के,
रंगों से भरा ऐसा आशियाँ था मेरा ,

खिलने लगी थी अब वो कलियाँ,कुछ कच्ची थी पर थी यही दुनिया,
दो माली उनको सीचां करते थे,कलियाँ खुश रहती थी उनके ही दम से,
लहरों पे बसा ऐसा आशियाँ था मेरा....


फिर एक दिन एक तूफान आया ,जिसमे एक माली बिछड़ गया ,
था अब एक माली और नन्ही कलियाँ, एक माली बिन सूनी थी बगिया,
अब कौन देगा उन कलियों को पानी,वो एक माली नहीं था उन सबके लिए काफी,
ये कैसा हो चला था आशियाँ मेरा...

अब बिखर गयी थी सारी बगिया ,मुरझा गयी थी सारी कलियाँ ,
रहने लगा था उदास वो एक माली,उसकी दुनिया हो चली थी खाली,
छोटा सा आशियाँ था मेरा ..
फिर एक दिन एक दूजा माली आया ,खुश रखेंगें बगिया को ये विश्वास दिलाया,
पर वो माली था व्यर्थ बिलकुल,उसको ना थी कोई फिक्र बिलकुल,
वो तो अपने लिए ही जीता था ,उसके लिए बगिया का कोई महत्व नहीं था,
छोटा सा आशियाँ था मेरा,
उजड़ गयी थी अब वो प्यारी बगिया ,दोनों माली ने जिसको ऐसे ही छोड़ दिया,
मुरझा चली थी सारी कलियाँ,रोती सोती सी हो गयी थी वो बगिया ,

दो माली उनको छोड़ चले थे,वो एक दूजे के बस हो चले थे ,
वो भूल गए थे अपना वादा ,उनके लिए अपनी ख़ुशी थी ज्यादा,
छोटा सा आशियाँ था मेरा ,
पर इन कलियों में कुछ जान थी बाकी,जिसे एक दूजे माली ने आकर जानी..

वो भी थे दो माली,जो सींचा करते थे अपनी बगिया की डाली ,
उन्होंने उन कलियों को लिया अपनी बगियाँ मैं डाल,अब उनकी बगिया हो गयी थी विशाल,
लेकिन वो डर से घबराएं नहीं,उनके इरादे डगमगाएं नहीं.

उन्होंने मन मैं लिया था ठान ,वो रखेंगें बगियाँ को जैसे अपनी जान,
लगे सीचने उन मुरझायीं कलियों को,प्यार और दुलार से उन प्यासी कलियों को,
ऐसा एक आशिया था मेरा ,

फिर एक दिन एक नया सवेरा आया ,खिल चुकी थी अब सारी कलियाँ ,
माली दोनों ही खुश थे आज ,उनकी मेहनत रंग लायी थी आज,कलियाँ फूल बन गयी थी आज,
सफल हो गया था उनका जीवन ,फूलों को मिल गयी थी उनकी मंजिल,
फूलों पे भवरें मंडराने लगे थे, फूलों के रस को वो चाहने लगे थे .
अब खुश हैं माली और खुश हैं बगियाँ ,
बस यही प्यारा सा आशियाँ हैं मेरा ........