Thursday, December 19, 2013

अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले!!

अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले 
कुछ अँधेरे मैं धूमिल और कुछ आँसू  में बह चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

कुछ पतझड़ के पत्ते बने, कुछ सावन के बादल,
कुछ बूँदे  बने  तो कुछ हवा हो चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

कुछ दीपक बने  तो कुछ जुगनू ,
कुछ बुझ गए पल में  और कुछ जगमगाते चले 
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !


कुछ आशा के फूल, कुछ निराशा कि झाड़ बने ,
कुछ चुभे थोडा थोडा सा और कुछ महकता संसार दे चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !


कुछ आँखों तले  बैठ कर ही मन लुभाते रहे,
कुछ नीद को  अपने गम बताते रहे,
कुछ बने अनकही और कुछ गुनगुनाते चले,
अधूरे ख्वाब मेरे कुछ पूरे हो चले !

Tuesday, December 3, 2013

शब्द.......

शब्दो की  सब माया है और शब्दो का सब खेल है 
शब्दो का है मेल ज़रूरी तभी दिलों का मेल है 

शब्दो का संसार बड़ा है! कटु, तीखा और शहद भरा है 
शब्दो के है जाल अनेक, फसे हमेशा उसमे नेक 

शब्दो से हारे हैं राजा शब्दो से जीते हैं फ़कीर 
शब्दो से ही बनी "मधुशाला" और शब्दो से ही बने हैं गीत 

शब्दो का ही दर्शन है और शब्दो से ही महायन 
शब्दो से ही महाभारत है और शब्दो से ही रामायण 

शब्दो ने छीनी है गद्दी,
शब्दो ने तोड़े परिवार 
शब्दो से ही हुई हैं संधि ,
 शब्दो से ही चली तलवार

शब्दो सा हथियार नहीं, इन जैसा  कोई बाण  नहीं 
शब्दो सी तलवार कहाँ और शब्दो सी  कोई ढाल नहीं 
सीख जाये जो इनको चलाना 
उसके पीछे चले ज़माना!!

Saturday, July 6, 2013

Few words for a broken heart!!

 हर अफसाने के पीछे तेरे, एक वजह दिखाई देती है
 हर दर्द के पीछे तेरे, कोई सजा दिखाई देती है 
अ दोस्त ये ही तो ज़िन्दगी  है, कभी सजा तो कभी मज़ा दिखाई देती है

अपने आंसू के सैलाब न बहा बेवजह 
इनकी भी कीमत है कुछ, ना लुटा बेवजह 
कल ज़रुरत हो किसी को जब इनकी, ऐसा नो हो की तू पत्थर बन जाये बेवजह 

गम ना कर उसका जो चला गया 
वफ़ा समझ उसकी कि वो  तुझको छोड़ गया 
यही तो वक्त है तेरा तुझको जानने का,
किसके लिए बना है तू  पहचानने  का 

ज़िन्दगी नाम नहीं केवल मोहब्बत का 
गर है ...तो जा अब कहीं और दिल लगा।

Nostalgia!!

यूँ देश विदेश मैं घूमे हम.…
पर वो बात कहीं भी आयीं ना ,
यूँ बीते दिन रात अनेक, पर वो रात कहीं भी पायी ना ,
होती थी अम्बर की चादर, और छोटू, तारो की ऊँगली पर गिनती करता था ,
बिस्तर पर मोटे गद्दे नहीं, बानो का तना  बिछौना होता था ,
दादी से किस्से सुनकर ही जब नीद आँख तक आती थी ,
जब सपनो की दुनिया ही बस मन को बहुत लुभाती थी ,
नहीं मिली वो रात कहीं जब भैया जोक सुनाता था ,
"दीदी ने खाई इमली आज" से ब्लैक मेल किया जाता था ,
लेटे लेटे जब यूँही, हाथ ज़मीन तक जाता था ,
मिट्टी का छोटा सा टुकड़ा  खाने को मिल जाता था 
पापा के आने का इंतीज़ार आँखों में होता था 
क्या खाने  की चीज़ लाये हो, बस ध्यान इसी पे रहता था;
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बीत गए वो पल सभी, पर यादे अभी भी ताज़ा हैं 
बनी रहे ये यादे यूँ ही और क्या इससे ज्यादा है।