Tuesday, April 20, 2010

मेरी तीर्थ यात्रा ...

धूप का प्रकोप था फिर भी हममे जोश था,
जा रहे थे मस्त हो ,रास्ता विशाल था,
क्या हसीं ख्वाब था, जबकि धूप का शवाब था ,
चले थे सुबह सुबह,प्रसिद्ध धाम देखने,

जैसे तैसे पहुँच गए,हम रामेश्वरम में ठहर गए,
क्या हमने सोचा था,और क्या वहां नज़ारा था,
एक बार फिर हमने अपने देश की सरकार का नाम पुकारा था,

मैंने तो कुछ और ही प्रति बनायीं थी रामेश्वरम की,
परन्तु ये क्या मेरी आँखे देख रही थी।

चार धामों में से एक धाम है रामेश्वरम,
देश के चारो कोनो में प्रसिद्ध है रामेश्वरम,
फिर भी क्या सच में यही है रामेश्वरम?

जैसे ही सीमा में प्रवेश किया,
गन्दगी के ढेर से सामना हुआ।

जो मंदिर इतना पवित्र माना जाता है,
जिसके कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य मोक्ष पाता है,
उस मंदिर के कुंड का वर्णन मुझसे नहीं किया जाता है।

देश के चारो कोनो से लोगो का आना जाना है,
पर क्या किसी के मन में ये विचार आता है?
ये कुंड मोक्ष कैसे प्रदान करेगा,
ये दिख रहा था जैसे गन्दा नाला है ।
में सोच रही थी स्नान करूँगीं उस कुंड में ,
पर देख कर उस कुंड को थी मैं अचरज में।

क्या हो रहा है हमारी देश की धरोहर का हाल,
जबकि प्रतिदिन इस मंदिर में होता है हजारों लाखो रुपयों  का व्यापार।

मंदिर से निकल जब पहुंची मैं स्नान घाट पर,
वहां का नज़ारा तो था और भी विपत्तिकर,
सैंकड़ों लोग कर रहे थे स्नान,
और साथ ही साथ कर रहे थे कूड़े और गन्दगी का भी दान,
दया आ रही थी मुझको देख कर ऐसे लोगो का हाल,
जो इस देश के लिए कुछ अच्छा तो शायद ही कर पायें ,
पर इसके सौंदर्य और सम्मान को बिगाड़ने मैं कर रहे हैं बड़ा योगदान।


मैंने देखा ,जो मुख्य मंदिर के बाहर लिखा था।
"केवल हिन्दू ही अन्दर आ सकते है " का बोर्ड लगा हुआ था।
परन्तु कोई समझाए इन्हें "केवल हिन्दू ही अन्दर आ सकते हैं " का बोर्ड लगा देने से मंदिर के बाहर,
कभी भी नहीं होने वाला है इससे भगवान् का आदर।

अगर देश का एक ऐसा स्थान,
जो माना जाता है पतीत पावन धाम ,
अगर उसका है ऐसा हाल,तो न जाने क्या होगा देश की और धरोहरों का अंजाम?
और अगर ऐसे ही चलता रहा तो लगता है कुछ समय बाद ,
देश की अनमोल धरोहरों का नहीं होगा कहीं पर भी नाम।

तुम बिछड़े....

तुम बिछड़े तो हम सबसे दूर हो गए,
तुम्हारे पास आने को मजबूर हो गए ,

तुम्हारे दूर जाने से जो ज़ख्म हुए दिल में,
वो आज का  दिन आते आते, नासूर हो गए,

हमने कब सोचा था की हम कुसूरवार हो जायेंगें,
और आप खता कर के बेकुसूर हो गए ,

आप तो बेखबर हो हमारी हालत से ,
अपनी ही बातों में मशगूल हो गए ,
हम यहाँ आंसूं बहते रहे आपकी याद में,
और आप ये सोच कर की याद नहीं करेंगे मगरूर हो गए,

एक ज़माना था कि चमका किया करते थे हम,
और आज हम कांच,आप कोहिनूर हो गए,

अ बेखबर तेरी दोस्ती ने हमे शायर बना दिया,
शुक्र है यहाँ मयखाना नहीं ,
नहीं तो मालूम पड़ता कि हम पीने वालो में मशहूर हो गए।